हाय रे, बारिश...!!!
हाय रे, बारिश...!!!
जब भी बारिश की गैरज़रूरी बूंदें
मेरी टूटी-फूटी अस्थायी कुटिया के
कमज़ोर छत की छेदों से होकर
जबरदस्ती बरसने लगती है,
तो मैं यहाँ-वहाँ
बाल्टी-हांडी जो भी मिले,
बूंदों के सीध में
संभालकर रखता हूँ...
और सोचते रह जाता हूँ
कि ऐसे बेमौसम
बारिश का क्या काम...!
फिर एक पल
एहसास करने की
कोशिश करता हूँ
कि जो मैं
सह रहा हूँ,
वो शायद
कोई और
अपने पक्के-मजबूत
कमरों में बैठकर
रोमांचित हो रहा है...
संभव है वो
अपनी कल्पना-जगत में
लीन होकर
किसी और
खुशनुमा दुनिया में
पहुंच कर
आनंदित हो रहा है...!!
ये तो वक्त-वक्त की
बाजी है :
कोई शय, तो कोई
मात खा रहा है!!!