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Akanksha Gupta (Vedantika)

Abstract

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Akanksha Gupta (Vedantika)

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मोहब्बत पैरहन नहीं

मोहब्बत पैरहन नहीं

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मोहब्बत पैरहन नहीं मेरी रूह का वो मक़ाम है

तेरे नाम से ही मेरे दिल की धड़कनों का क़याम है


मिलने को बहुत तरसते है ख्याल तेरे दीद का

आज भी जो खत लिखें तुझे हमने बेनाम है


मोड़ कर कुछ पन्नों पर लिखी थी जो दास्ताँ

आज भी उस एक गली का नाम गुमनाम है


ख़्वाहिशें हज़ार थीं ख़्वाबों के इस महल मे

अफसाना बन कर आज दुनिया में बदनाम है


आज तलक़ नहीं मिलता सवाल इस जवाब का

मोहब्बत के लफ्ज़ो में लिखी एक अधूरी शाम है।


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