मोहब्बत का सिला
मोहब्बत का सिला
मेरी मोहब्बतों का तूने ऐसा सिला दिया है
नाम-ए-वफ़ा से मुझको बेगाना कर दिया है।
जश्न -ए- बहार का था, मुन्तजीर मैं यारों
दामन को उसने मेरे कांटो से भर दिया है।
कैद में था मैं एक नातवा परिंदा
देकर मुझे रिहाई पंख को कुतर दिया है।
खाई थी साथ जिसने जीने-मरने की लाखों कसमें
सागर का ख़्वाब देकर सहरा में छोड़ दिया है।
जिसे मैं समझ रहा था अपना हमसफ़र-हमसाया
उसने ही मेरे ख़्वाबों की किस्ती डुबो दिया है।
जिसने कहा था मुझसे तुम जान हो हमारी
उसने ही मेरे दिल में खंज़र चुभो दिया है।