आशिकों की ईंद
आशिकों की ईंद
आज की शाम कुछ रंगीन सी लगती है,
सच कहूँ तो बड़ी हसीन सी लगती है।
जैसे जल रहे हों चराग़ उल्फ़त के,
हर चीज बेहतरीन सी लगती है।
सुना है आशिकों की ईद है आज,
इसीलिए ये महफ़िल आफ़रीन सी लगती है।
चले आओ तुम भी बज़्म-ए-यारा कभी,
के तन्हाई अक्सर ग़मगीन सी लगती है।
'इन्तखाब' तुम्हें भी इश्क हो गया है शायद,
आज तुम्हारी भी बातें शीरीन सी लगती है।