मोहब्बत बनाम सोना-चाँदी।
मोहब्बत बनाम सोना-चाँदी।
आज हम इंसानों को ये क्या हो गया,
मौके का फ़ायदा उठाना ही धर्म बना।
मोहब्बत को भी तो ना कुछ लोगों ने,
आज बस व्यापार ही तो है बना डाला।
सोना-चाँदी हीरे-मोती का कैसे सिर पर,
चढ़कर बोलने लगा हैं यारों नशे पर नशा।
आख़िर कब तक लालच और झूठ-फरेब,
कर निर्दोषों और मासूमों को हमने ठगना।
सोने-चाँदी के तराजू में इंसानियत तोलते,
प्यार को तो बख्श दीजिए जो है अनमोल।
अभिलाषा है कि बेदर्द दुनिया को जला डाले,
नारी बिक रही हैं जहाँ पर ना शराब की तरह।
हैं रिश्ता मोहब्बत का दर्द-ए-दिल से ये कैसा,
मगर ये दर्द भी तो है मीठा-मीठा प्यारा-प्यारा।
