मोह
मोह
सोचा कई बार
मोह न रखूंगी अपने पास
फिर भी छा जाती है
वक्त बेवक्त आशंकाओं की बदली
आखिर होता क्यों है ये मोह
आ जाते बार-बार सम्मुख
जिंदगी के भीगते वे पल
निरर्थक हो जाते सारे प्रयास
मन उलझ यादों के तूफान में
खींचता जाता अदृश्य संभावनाओं की ओर
सब कुछ छोड़ विमुख होने का प्रयास
होता जाता फिर असफल