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मंज़र

मंज़र

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दोनों तरफ एक जैसा ही मंज़र है ।

छुपा रहे हे दोनों, जो दिल के अंदर है l


वैसे तो फूल यहाँ खिलते है,हर तरफ

ऐसे भी बाग़ है यहाँ, जो बंजर है ।


हम तो तैयार कब से है खडे दिन भर

हमें पता है, तेरी आँखे ही खंजर है ।


इतना ही गुमाँ है, तो आ आज़माले

दिल तो, हम भी रखते समंदर है ।


तू थक जायेगी बेवफाई करते-करते

वफ़ा के तो हम आज भी सिकंदर है ।



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