मनुष्य मन का मैला
मनुष्य मन का मैला
मन जिसका मैला होता है
अपनो की भीड़ में भी वो अकेला होता है
देकर धोखा अपनो को
कैसे वो चैन से सोता है
एहसास नहीं उसको होता है
कि धोखे का फल बुरा ही होता है
वक्त जब गुजरता जाता है
उसके पापों का घड़ा भरता जाता है
हो जाते हैं जब दिन बुरे उसके तो
खुदा को दोषी ठहराता है।
