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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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मनोकामना।

मनोकामना।

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मन बड़ा व्याकुल तुम बिन ऐसे, जैसे तड़पत जल बिन मछली।

भटक रहा कब से न जानूँ, तीर्थ किए कई माला जप ली।।


मानुष तन का मोल न समझा, व्यर्थ गंवाये दिन और रैना।

छल-कपट से जीवन काटा, दोहरे चरित्र का जामा पहना।।


आत्म स्वार्थ बन अपना सोचा, कर न सका दीनन की सेवा।

धन-दौलत ने सब कुछ छीना, असली दौलत बस एक परसेवा।।


मन में जब भी अच्छा कुछ सोचा, न जाने किसने है रोका।

करता रहा बस अपनी मनमानी, खाता रहा पग-पग पर धोखा।।


भव सागर बीच फंसी जब नैया, सूझे न मुझको कोई खिवैया।

एक भरोसा मात्र तुम्ही हो, संकट मोचन तुम पार लगैया।।


डर नहीं इतना मौत का मुझको, जितना संचित पाप कर्मों से होता।

सुख-दुख संस्कार नियत हैं करते, क्यों नहीं गुरु स्मरण तू करता।।


सच्चिदानंद संबंध तू स्थापित कर ले, गुरु-नाम की माला तू जप ले।

"नीरज" कर दे समर्पित गुरु को, "मनोकामना" तब पूरी तू कर ले।।


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