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Amit Aman

Classics Inspirational Thriller

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Amit Aman

Classics Inspirational Thriller

मनोदशा

मनोदशा

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जब कभी परेशान होता हूँ

हड़बड़ा जाता हूँ मैं।

व्यक्त करने में अपनी मनोदशा

गड़बड़ा जाता हूँ मैं।


निकल जाता है, बुरा वक्त भी धीरे धीरे

सोच भी नही पाता जिनके बारे में

उन्हें कांधे पे हाथ रखे

बगल में खड़ा पाता हूं मैं।


जब कभी...............

हड़बड़ा जाता हूँ मैं।

यूं देखें है ,जिन्दगी को कई अवसर पर

सुख के पल भी आए और दुखों का सैलाब भी


दिनों ही स्तिथियों में

आंखें सुखी रहती है और

अंतर्मन से डबडबा जाता हूँ मैं।।

जब कभी भी...... हूँ

हड़बड़ा जाता हूँ मैं।


ईश्वर ने दिए है सभी अनमोल रिश्ते

पर कहां निभा पाता हूँ मैं

फिर भी सिर आंखों पे उठा लेते हैं सभी

जहां जाता हूँ मैं।


मैं अपनी भावनाओं का एहसास

उन्हें नहीं करा पाता,

बस होठ हिलते हैं और

कुछ बड़बड़ा जाता हूँ मैं।


जब कभी परेशान होता हूँ

हड़बड़ा जाता हूँ मैं।


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