मणिकर्णिका की भस्म होली
मणिकर्णिका की भस्म होली
मणिकर्णिका के तट पे देखो, कैसी होली आई है,
चिताओं की भस्म उड़ रही, शिव की मस्ती छाई है।
डमरू गूंजे, राग बजे, गूंजे वैराग्य का गान,
भस्म लिपट कर कह रही, मिट्टी का क्या है अभिमान?
यहां न विरह, न मोह कोई, न सांसारिक तृष्णा है,
मृत्यु की अग्नि में जलकर, आत्मा पावन रिश्ता है।
रंग नहीं, गुलाल नहीं, चिता भस्म का टीका है,
मोक्ष नगर में मृत्यु भी तो, एक पावन संगीत है।
भय का कोई नाम नहीं, न पीड़ा, न संताप यहाँ,
शिव के चरणों में सब लय, जीवन-मरण समान यहाँ।
शाश्वत सत्य का पर्व यही, यह ही अन्तिम साधना,
मणिकर्णिका के दीप तले, शिव संग होती आराधना।
जो इस होली संग जले, वह भवसागर तर जाएगा,
मृत्यु की इस मस्ती में भी, मोक्ष का दर्शन पाएगा।
