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Dharm Veer Raika

Abstract

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Dharm Veer Raika

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मंजिल..........।

मंजिल..........।

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था मैं नींद में और मुझे इतना सजाया जा रहा था,

बड़े ही प्यार से मुझे नहलाया जा रहा था


ना जाने वो कौन सा अजीब खेल था मेरे घर में,

बच्चों की तरहा मुझे कन्धे पे उठाया जा रहा था


था पास मेरे हर कोई मेरा अपना ,

जो मुझे रो रोकर जगा रहा था


जहां मुझे आखिरी बार सुलाया जा रहा था,

मेरी रूह भी तड़प उठी थी उस वक़्त ,

जब मुझे मेरे अपनों के ही हाथों जलाया जा रहा था


मेरी मंजिल भी हँस कर मुझे कहने लगी

बड़ी देर लगा दी तूने यहां आने में

तेरे अपने ही शामिल हैं तेरे जनाजे में


             


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