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Minal Aggarwal

Fantasy

4  

Minal Aggarwal

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मंजिल हर राही को मिलती है

मंजिल हर राही को मिलती है

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जीवन के बाद 

क्या होता है 

यह समझने से पहले 

जानना होगा कि 

यह जीवन क्या है 

कोई कितनी भी कोशिश कर ले पर 

क्या जीवन को समझ पाया है 

अपने जीते जी इसकी सटीक व्याख्या कर 

पाया है 


इसको चाहो तो कितने भी अर्थ दे दो 

इसको जितना संभव हो सके उतनी 

परिभाषाओं में बांध लो पर 

इससे क्या होता है 

यह कोई कैसे जानेगा कि 

जो कुछ जीवन के बारे में 

कोई बता रहा है 

वह कितना प्रतिशत सच है 

जिसका जैसा अनुभव है 


वैसे वह थोड़ा बहुत इसके 

बारे में कह सकता है पर 

यह पर्याप्त नहीं है 

कई बार जो हम देखते हैं 

सुनते हैं 

सोचते हैं 

समझते हैं 

कहते हैं 


वह सत्य प्रतीत होता है पर 

सत्य होता नहीं है 

सब भ्रम है 

मिथ्या है 

नजर का धोखा है 

यह संभव है और 

ऐसा होता है कि 


पानी की एक बूंद किसी को

एक सागर का आभास देती हो और 

किसी के सामने सागर खड़ा हो 

और वह उसे पानी की एक बूंद भी

न समझे 

किसी के लिए एक व्यक्ति 

उसकी संपूर्ण दुनिया हो सकता है 


और कई बार किसी को 

इस दुनिया के सारे सुख मिल जायें

तब भी वह आदमी इस सफलता से 

निराश हो सकता है 

जीवन ही पलक झपकते 

मिलने से पहले समाप्त हो 


जाता है 

यह क्या किसी को समझ 

आयेगा 

जीवन ही नहीं रहेगा तो 

जीवन के बाद क्या 

होता है 

यह जानकर भी क्या हासिल 

है 


अच्छाई की परिभाषा क्या है 

किसी की अच्छाई नापने का 

यंत्र क्या है 

इसका मापदंड क्या है 

एक आदमी में सारे वह गुण 

मौजूद होने पर

जिससे वह अच्छा साबित 

होता है पर 

लोग तब भी उसे बुरा ठहराने से 

बाज नहीं आते


इस तरह की विकृत मानसिकता 

के लोग गर कहीं 

आपसे जुड़ने लगते हैं तो 

वह जीवन को 

जिसमें एक तो पहले से ही 

कुछ नहीं है पर 

उसे और नीरस बना 

देते हैं लेकिन 

जीवन के बाद भी 

जीवन होता है 


कुछ परिवर्तित होता है तो 

बस इसका रूप 

जिसे खुद भी पहचानना कई 

बार असंभव सा प्रतीत होता 

होगा

एक मृत शरीर से जब 

आत्मा अलग होती होगी तो 

वह एक नई दुनिया में 

प्रवेश पाती होगी 


उसका स्वरूप नया होता होगा 

उसकी संरचना भिन्न होती होगी 

उसके नये जीवन की 

शुरुआत होती होगी 

ऐसा न भी होता हो पर 

ऐसा सोचने में आखिर 

बुराई क्या है 


क्यों हम मान लें कि 

हमारे जीवन का अंत 

हमारी मृत्यु के साथ हो जाता 

है 

मुझे लगता है कि नहीं 

होता


आत्मा फिर से तलाशती 

है खुद को बसाने के 

लिए कोई घर या 

शरीर या 

वह एक माध्यम तलाशती है 

मंजिल हर राही को 

मिलती है 

यह जरूर है कभी 

जल्दी तो कभी 

देर से।


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