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Chandramohan Kisku

Abstract

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Chandramohan Kisku

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मन ठीक नहीं है

मन ठीक नहीं है

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मन ठीक नहीं है 

खुश नहीं हो पा रहा हूँ 

खेत में फसल बर्बाद हो गया है 

धान की पौधा जैसे 

कोई अनाथ बालक हो 

भूख से मुँह फाड़कर  

खड़े है आसमान की ओर।


मन ठीक नहीं है 

इधर पत्नी की भी 

मुँह सूख गया है 

बीमारी से कमजोर हो गई है 

छह महीना से 

खटिया पर पड़ी है 

इधर मेरा दवाई खरीदने के लिए भी 

शक्ति बचा नहीं है।


घर में खाने को 

दो- चार दाने भी नहीं है 

कल से चूल्हा भी जला नहीं है 

इधर बच्चे तो मानेंगे नहीं 

भूख लगने पर 

खाना मांगेंगे ही।


मन थोड़ा भी ठीक नहीं है 

कल सरकारी राशन दुकान गया था 

हाथ में लाल कार्ड लेकर 

दो रूपया किलो के चावल खरीदने।


हाय मेरा अभागा कपाल

वह भी मिला नहीं 

ख़त्म हो गया ,मुझसे कह दिया

इधर गाँव के मुखिया के लिए 

गाड़ी भरकर पहुंचा दिया।


मन थोड़ा भी ठीक नहीं है 

सर चकरा रहा है 

ऐसे हालत में 

मिला मुझे 'नोटिस'

बैंक का नोटिस 

बहुत पहले 

मैं जब छोटा था 

मुखिया साहब के कहने पर 

पिताजी मेरा दिया था।

 

अँगूठा का छाप 

यह उसी का ही 

नोटिस है 

'लोन ' का रूपया न चुकाने का 

नोटिस.

ऐसे हालत में 

तुम ही कहो तो 

मैं क्या करूँ ?

ख़ुशी मनाऊँ या आँसू बहाऊँ ?


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