मन में बसे हैं राम
मन में बसे हैं राम
मन में राम बसे हैं, धरती के कण-कण में राम बसे हैं,
हर सांस में, चेतना में जीवन के हर क्षण में राम बसे हैं,
राम हैं दर्पण सत्य मार्ग का, राम प्रेम हैं राम ही अर्पण,
जीवन भवसागर को पार करे वो, जो राम नाम में रमे हैं,
सब पुरुषों में हैं उत्तम राम, हैं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम,
बुराई वहां अंधकार फैला नहीं सकती, जहां राम खड़े हैं,
हर युग में जन्मा एक रावण, तो राम ने भी अवतार लिया,
राम नाम का जो वरण करे, वही तो बुराई से सदा लड़े हैं,
राम बनना आसान नहीं, पल-पल मुश्किलों से है सामना,
पिता का वचन निभाने को, राम ने भी राज सुख त्यागे हैं,
क्रोध, द्वेष, अहंकार को त्याग कर मन में बसा लो राम को,
राम बसे जिनके मन, वो विपदा में भी धीरज बांधे खड़े हैं
इस कलयुग में मन के रावण को मिटा सका ना ये समाज,
न जाने समाज में कितने ही रावण सर उठाकर चल रहे हैं,
रावण का पुतला वही जलाए, जिसके भीतर राम समाया,
पर यहां तो रावण ही आज, रावण का पुतला जला रहे हैं,
जब खत्म होगा मन का रावण हर नारी चलेगी सम्मान से,
तब सर उठा कर कहेंगे, हर तन में, हर मन में राम बसे हैं,
इंसान इंसान से नहीं करे नफ़रत अनैतिकता का हो नाश,
तब कहेंगे रामराज्य है ये, जिसके कण कण में राम बसे हैं।