मन की पीर
मन की पीर
दो आखर सौरी के, मिटे न मन की पीर
माफी देना मन से, हिय धरे न धीर।
हिय धरे न धीर, मन को ये समझाऊँ
तुम तो कह निकल गए, मैं पाछे पछताऊँ।
मैं पाछे पछताऊँ, धन्य रे पिता मात हमारी
सौरी कह उनसे तब, निकल जाते हर बारी।
निकल जाते हर बारी, ये आज समझ आई
बच्चे सौरी कहे बिना, नाराज घूमें रे भाई।
नाराज घूमे रे भाई, हम पे रौब जमावें
गलती तो वो करें, माफी हम ते मँगवावें।
माफी हम ते मँगवावें, न समझे मन की पीर
समय रहते न संभले, तो कौन धरेगा धीर।
कौन धरेगा धीर, समय तेजी से बदले
हाथ धरे रह जाओगे, मिटेगी न मन की पीर।