मन और जादुई चिराग
मन और जादुई चिराग
हमारे एक दोस्त को एकाएक
जंगल में पड़ा जादूई चिराग क्या मिल गया,
चिराग मिलते ही बुझा हुआ चेहरा खिल गया,
सोचने लगे इस चिराग का क्या करूं, किसको दूं,
या फिर इसी जंगल में वापस से फैंक दूं,
विचार करते करते उनका माथा एकदम ठनका,
कुछ ऐसा करूं जो हो जाए सबके मन का,
चिराग को लेकर कई लोगों को टटोला,
हर एक व्यक्ति का मन, अलग अलग बोला,
एक नेताजी बोले, मुझको दे दो यह चिराग,
नोट कमाकर, वेबकूफ बनाकर, छोड़ दूंगा देश,
नहीं कर पा रहा सेवा यहां पर, कब तक बदलूगां वेश,
एक व्यापारी ने भी अपनी मन की बात बताई,
कहां डूब रहे व्यापार धंधे, बची नहीं कोई कमाई,
करूंगा जमकर कालाबाजारी, बनाउंगा अपनी साख,
एक बार मुझको मिल जाए यह जादुई चिराग,
सबकी बातों को सुन, दोस्त का फिर माथा ठनका,
देश पड़ा है विपदा में तो क्यों न करूं में मन का,
दोस्त ने धीरे धीरे जादूई चिराग को घिस डाला,
घिसने के बाद निकली चिंगारी, हुआ कुछ उजाला,
निकलते ही एक जिन्न बोला,
क्या हुकम है मेरे आका,
दोस्त बोला, दूर करो, देश का संकट
किसी का भी न हो बाल बांका,
कुछ ऐसा करो की यह महामारी टल जाए,
परेशान देशवासियों को कुछ संबल मिल जाए,
जिन्न बोला, होगा आपके हुकम का पालन,
अपने देश के लिए कुछ करने का है
होगी देश में चारो तरफ खुशहाली ही खुशहाली
यह कह जिन्न ने चिराग में अपनी वापसी डाली।