मन की आरजू
मन की आरजू
हर जगह पर तू ही तू है आज फिर
अनकही एक गुफ़्तगू है आज फिर।
शब चुराई मैंने तेरे ख़्वाब से जो
रात मुझसे रँगे-ए- रू है आज फिर।
अंजुमन में रात सोती रह गई
मन में कुछ अहले जुनूँ है आज फिर।
अब न चाहत है मोहब्बत की कोई
एक अजब सी जुस्तजू है आज फिर।
शब सुहानी आए न शायद कोई
एक खनक सी चार सूं है आज फिर।
जिस पे ठहरीं है ज़माने की नज़र
मन को तेरी आरजू है आज फिर।
रोशनी रूबरू एक नजर आई है
चाँद के साथ में "नीतू" है आज फिर।