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Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

Abstract

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Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

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मन के उद्गार

मन के उद्गार

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बदली है तारीख आज बस खुशियों के आसार नहीं।

अंग्रेजों का नया साल यह भारत को स्वीकार नहीं।


दिशा न बदली नक्षत्रों की, ना मौसम ना ही फसलें,

वही ठिठुरती धरा आज भी, नूतन क्या जिसका रस लें।

कुछ हो नया करें जो स्वागत, भेड़ चाल चलते क्यूँ हैं ?

मद पीकर हंगामों वाले, कृत्य कहो पलते क्यूँ है ?

देव भूमि भारत मर्यादा का ये तो विस्तार नहीं।

बदली है तारीख आज बस खुशियों के आसार नहीं।


माना हम उत्सवधर्मी हैं, पर उत्सव सा भी तो हो,  

कुछ तो नया दिखे अद्भुत सा, कोई परिवर्तन तो हो।

कल भी वही शीत था कुहरा, वैसा ही सब आज दिखा

हमको तो नूतन सड़कों पर, बोतल, कचरा आज दिखा।।

गर्व करो उस परम्परा पर, अपनी कोई उधार नहीं।

बदली है तारीख आज बस, खुशियों के आसार नहीं।।


चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि को, नूतन सब कुछ होता है।

विद्यालय का सत्र नया अरु कृषक फसल नव जोता है।

त्योंहारों का देश है भारत, नूतन पर्व शुरू होते।

माता की नवरातों में जग, अणु संस्कारों के बोते।

विक्रम संवत सत्य सनातन, पूजा है बाजार नहीं।

बदली है तारीख आज बस खुशियों के आसार नहीं।


दोनों में कितना अंतर है, कभी समझ से तोलो तो।

जंग लगे मन के दरवाजे के फाटक तुम खोलो तो।

काल की गणना भारत से ही सीख विदेशी जाते हैं।

बिन सोचे समझे कुछ भी हम आखिर क्यूँ अपनाते हैं?

फादर, वेलेंटाइन, मदर डे, अपने ये त्यौहार नहीं।

बदली है तारीख आज बस खुशियों के आसार नहीं।


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