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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract Tragedy Inspirational

मकर संक्रांति पर्व

मकर संक्रांति पर्व

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सूर्य देव का जब होता है,उत्तरायण आगमन

शीतऋतु का होने लगता है,थोड़ा-थोड़ा गमन

तब आता है,यह मकर सक्रांति पर्व का सुमन

इसदिन सूर्य का मकर राशि मे होता,आगमन


आज के दिन तो दान,पुण्य की चलती पवन

आज तिल,गुड़ और खीच के बनाते,व्यंजन

इन्हें खाकर,खिलाकर के प्रसन्न हो जाता,मन

गुड़-तिल जैसे हम मिलकर रहे,फैलाये अमन


खीच के जैसे सदैव ही रहे,हम प्रसन्नचित तन

आज के दिन बच्चे,बूढ़े पतंग को उड़ाते,गगन

हम भी पकड़ डोरी,मन उड़ाये स्वप्न पतंग गगन

आज सितोलिया,गिल्ली-डंडा को खेलते जन


सितोलिया जैसे हम भी लक्ष्य का पा ले,तन

पकड़कर कर्म डंडा,स्वप्न गिल्ली उछाले गगन

आज के दिन,बुजुर्गों के छूते हम सब तो चरण

सनातन संस्कृति तुझको मेरा शत शत-नमन


तूने जीने के लिए,दिये हमे कई त्योंहार चंदन

मकर सक्रांति आते,फिर लौट आता,बचपन

इस दिन बच्चे,युवा,बूढ़े सब होते खेल में मगन

पर आज खा गया,मोबाइल हर त्योंहार बदन


पर्व,उत्सव पर ही थोड़ा दूर रखें,गर मोबाइल हम

खुदा कसम फिर तो फिर से खिल जायेगा चमन

फिर से हर रिश्ते का खिल उठेगा मुरझाया, सुमन

इस मकर सक्रांति मोबाइल देखना थोड़ा करे, कम।


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