मजदूर
मजदूर
हालातों से मजबूर हूँ मैं मज़दूर हूँ मैं
प्रभु देते ध्यान नहीं खुशियों से बेनूर हूँ मैं
गर्मी सर्दी बारिश में भी हम
मेहनत करते दिन रात हम
सहते है दर्द-नाक दर्दों को
भूखे प्यासे मुश्किलों में हम
अधूरी जरूरतों से ही पुर नूर हूँ मैं
हाँ मज़दूर हूँ मैं ..
हर एक प्रहार मैं जोर करूँ
प्रतिदिन ही श्रम घोर करूँ
रोते बिलखते मासूमों समक्ष
कैसे मैं मन को मोर करूँ
देखो कितने चिथड़ों से चूर हूँ मैं
मज़दूर हूँ मैं..
आत्म संतुष्ट कर ये मन
कर्मों में रहता हूँ मगन
ख्वाबों की दुनिया न्यारी
है जज्बा छूने का गगन
दरिद्रता से पर ग़मों से दूर हूँ मैं
सुनो मज़दूर हूँ मैं..