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Dr Sanjeev Dixit

Abstract

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Dr Sanjeev Dixit

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मिट्टी का खिलौना

मिट्टी का खिलौना

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माँ, मैं मिट्टी का खिलौना हूँ

तूने अपनी मिट्टी से मुझे बनाया है

जब, जहाँ से भी मैं कभी टूटी

अपनी मिट्टी निकाल वहाँ लगाया है


तेरे शरीर में जो हैं अनगिनत छेद

अनगिनत बार मुझे मरहम लगाया है

जब भी ख़ुद को देखा आईने में


ऐसा लगा तुझे आईना दिखाया है

तू मुस्कान की धूप,प्यार की बारिश

इस क़दर तूने मौसमों से मिलाया है

हर मोड़ पर लगे तू चलती साथ साथ


मेरी जो परछाईं, वो तेरा साया है

माँ, तेरा दिल किस मिट्टी से है बना

आख़िरी निवाला भी मुझे ही खिलाया है


माँ, मैं मिट्टी का खिलौना हूँ

तूने अपनी मिट्टी से मुझे बनाया है

जब, जहाँ से भी मैं कभी टूटी

अपनी मिट्टी निकाल वहाँ लगाया है।


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