ज़िंदगी तेरे आज में हूँ और गुज़रें कल में भी,
कभी आसां में हूँ और कभी मुश्किल में भी,
मुझे ढूँढो ख़याल के इस बेशकल भीड़ में,
मिलूँगा उस “बेकल” में और इस “बेकल” में भी
डॉ. संजीव दीक्षित “बेकल” गत ३० सालों से साहित्य सेवा मैं संलगन है और अपनी कविता संग्रहो एवं लघु कथाओं के द्वारा हिंदी पाठक... Read more
ज़िंदगी तेरे आज में हूँ और गुज़रें कल में भी,
कभी आसां में हूँ और कभी मुश्किल में भी,
मुझे ढूँढो ख़याल के इस बेशकल भीड़ में,
मिलूँगा उस “बेकल” में और इस “बेकल” में भी
डॉ. संजीव दीक्षित “बेकल” गत ३० सालों से साहित्य सेवा मैं संलगन है और अपनी कविता संग्रहो एवं लघु कथाओं के द्वारा हिंदी पाठक समुदाय से जुड़े हुँये हैं। “बेकल”जी का सर्वप्रथम काव्य संग्रह “ तिनका-एक सफ़रनामा” २०१७ में अनुराधा प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुआ था जिसको साहित्य समाज से अत्यधिक प्रशंसामिली थी। उसके उपरांत दूसरा एकल काव्य संग्रह २०१८ में अनुराधा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ जोकि हिंदी एवं अंग्रेज़ी संस्करण में था और उसका शीर्षक था “ ज़िंदगी-एक सफ़रनामा” जिसने पाठकों को ज़िंदगी के मर्म से साक्षात्कार कराया। इसके अलावा तीन साँझा अंतरराष्ट्रीय काव्य संग्रह में भी मुख्य कवि के तौर पर रचनाएँ प्रकाशित की।
उनकी साहित्य साधना की यात्रा में नई कड़ी है “ धूप को निचोड़ कर काव्य संग्रह जिसमें पाठक पायेंगे विभिन्न भावनाओं एवं जीवन दर्शन का मिलन जोकि आपको परिपक्व दुनिया में ले जायेगी।
डॉ. संजीव दीक्षित पीछले २२ वर्षों से मानव संसाधन एवं प्रगति में अंतरराष्ट्रीय कम्पनी में उच्च पद में पदासिन है और अपने योगदान के कारण सर्व प्रसिद्ध है। Read less