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Dr Sanjeev Dixit

Abstract

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Dr Sanjeev Dixit

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मैं बड़ा हो रहा हूँ

मैं बड़ा हो रहा हूँ

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ज़िंदगी तेरी ऊँगली पकड़ फिर से खड़ा हो रहा हूँ,

अपने बच्चों के साथ साथ मैं भी बड़ा हो रहा हूँ।


भीनी धूप के ग़ुब्बारे सर्द आसमान में उड़ा रहा हूँ,

अपने बच्चों के साथ साथ मैं भी बड़ा हो रहा हूँ।


मासूम सपनों को नन्हें क़दमों पर दौड़ा रहा हूँ,

अपने बच्चों के साथ साथ मैं भी बड़ा हो रहा हूँ।


हार जीत से परे खिलोनौं के किरदार लड़ा रहा हूँ,

अपने बच्चों के साथ साथ मैं भी बड़ा हो रहा हूँ।


अपने सपनों को बड़ा करने की ज़िद पर अड़ा रहा हूँ

अपने बच्चों के साथ साथ मैं भी बड़ा हो रहा हूँ।


ज़िंदगी तेरी ऊँगली पकड़ फिर से खड़ा हो रहा हूँ,

अपने बच्चों के साथ साथ मैं भी बड़ा हो रहा हूँ।


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