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Lakshman Jha

Abstract

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Lakshman Jha

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मित्रता का मंत्र

मित्रता का मंत्र

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दोस्तों की भी

खरीद बिक्री

का जमाना

अब आ गया !

क्षण में दोस्त

बना लेते हैं

फिर उसे

मिटाना आ गया !


फेसबुक के

बाज़ारों में

बिन दाम के

ही मिलने लगे !

आँख, नाक, मुंह,

कौन देखता

हम तो सबको

खरीदने लगे !


कतार में लोग

सब खड़े यहाँ

श्रेष्ठ, समतुल्य की

बोली लगाओ !

गुण कभी देखो

ना इन सभा का

खुलके अपनी तुम

मुहर लगाओ !


हमें तो लोगों को

गर्व से सीना फुला

कर कह सकेंगे !

देख लो हम अपनी

संख्याओं को

सबको बता सकेंगे !


कौन देखता इसमें

कोई मिल गया

एक धनु र्धारी !

किसके हाथों में

कलम है कौन है

गांडीवधारी ?


विचारों का मेल

कैसे हो इनका

हम जानते नहीं !

उनकी शिष्टता

माधुर्यता को

हम पहचानते नहीं !


मित्र तो हमारे

लाख बनते हैं बिछुड़

जाते यहाँ पर !

कौन रखता याद

कौन फिर लौटकर

आता यहाँ पर ?


'बाज़ार' के इस शब्द

भेदी बाण को

भूलाना हमको होगा !

मित्रता के पुराने

मन्त्रों को फिर से

दुहराना हमको होगा !


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