मित्रता का मंत्र
मित्रता का मंत्र
दोस्तों की भी
खरीद बिक्री
का जमाना
अब आ गया !
क्षण में दोस्त
बना लेते हैं
फिर उसे
मिटाना आ गया !
फेसबुक के
बाज़ारों में
बिन दाम के
ही मिलने लगे !
आँख, नाक, मुंह,
कौन देखता
हम तो सबको
खरीदने लगे !
कतार में लोग
सब खड़े यहाँ
श्रेष्ठ, समतुल्य की
बोली लगाओ !
गुण कभी देखो
ना इन सभा का
खुलके अपनी तुम
मुहर लगाओ !
हमें तो लोगों को
गर्व से सीना फुला
कर कह सकेंगे !
देख लो हम अपनी
संख्याओं को
सबको बता सकेंगे !
कौन देखता इसमें
कोई मिल गया
एक धनु र्धारी !
किसके हाथों में
कलम है कौन है
गांडीवधारी ?
विचारों का मेल
कैसे हो इनका
हम जानते नहीं !
उनकी शिष्टता
माधुर्यता को
हम पहचानते नहीं !
मित्र तो हमारे
लाख बनते हैं बिछुड़
जाते यहाँ पर !
कौन रखता याद
कौन फिर लौटकर
आता यहाँ पर ?
'बाज़ार' के इस शब्द
भेदी बाण को
भूलाना हमको होगा !
मित्रता के पुराने
मन्त्रों को फिर से
दुहराना हमको होगा !