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Kanchan Hitesh jain

Romance

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Kanchan Hitesh jain

Romance

मिलते है पर मुलाकात नहीं होती

मिलते है पर मुलाकात नहीं होती

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मिलते है पर मुलाकात नहीं होती।

मेरे सिरहाने बैठ माथे पर हाथ फेरती है।

सपनों में रोज आती है वो, 

पर बात नहीं होती‌।


वो देखती है मुझे मैं देखता हूं उसे,

नज़रो से नजरें टकराती है, 

पर आवाज नहीं होती।

मिलते है पर मुलाकात नहीं होती।


उसके होंठों पर मिठी सी मुस्कान,

और आंखों में नमी।

मन करता है बाहों में भरकर अपने,

 चूम लूं माथे को उसके।


पर अक्सर नींद खुल जाती है,

और वो आस-पास नहीं होती।

मिलते है पर मुलाकात नहीं होती।


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