महर्षि विश्वामित्र
महर्षि विश्वामित्र
गाधि के सुपुत्र,महा पराक्रमी नरेश,
महाज्ञानी,धर्मपरायण था उनका चरित्र,
कठोर तप कर बने राजर्षि से ब्रह्मर्षि,
सौ पुत्रों के पिता थे महर्षि विश्वामित्र,
ऋषियों के लिए महर्षि परमपूज्य बने,
सप्तर्षियों में अन्यतम स्थान था मिला,
ऋग्वेद तृतीय मंडल के 62सूक्तों के द्रष्टा,
अप्सरा मेनका संग अथाह प्रेम था खिला,
सशरीर स्वर्ग गमन इच्छा लिए जब,
गुरु श्रापित त्रिशंकु आए महर्षि के शरण में,
विशाल हृदय के स्वामी विश्वामित्र ने,
समस्त तपोबल अर्पित किया इच्छा पूरण में,
सशरीर भेजा उसे स्वर्ग,पर इंद्र ने था लौटाया,
सर के बल गिरता देख,उसे अधर में ही लटकाया,
नक्षत्र मण्डल में अनंत काल के वास का देकर वर,
नव तारे के साथ सप्तर्षि संग नभ मे उसे सजाया।