STORYMIRROR

Meera Parihar

Abstract

4  

Meera Parihar

Abstract

महराब दार जालियां

महराब दार जालियां

1 min
264



महराबदार जालियाँ आले कहाँ गये ।

दर औ दीवार घर ,घरवाले कहाँ गये।।


हमने यहीं पर की थीं, अठखेलियां कभी।

गुमसुम उदास डाल कर , ताले कहाँ गये।।


बेनूर ये दरीचे रौजन और मकां हुए ।

मेरी जिंदगी को ढाले , पाले कहाँ गये।।


कुछ दूर वायीं जानिब, मक़तब ये मग्मून।

कांधे पे बोझ मुस्तक़बिल , सम्भाले कहाँ गये ।।


छूटे हुए मकान में ,ढूंढूं मैं नक़्शे पा ।

पग-पग पे पीछे आने, वाले कहाँ गये।।


निन्यानवे के फेर ‘मीरा ‘,उलझा हुआ जहां।

सौ- सौ जो कल निकाले, सम्भाले कहाँ गये ।।


दरीचे _खिड़कियां रौजन _रौशन दान

मक़तब _पाठशाला मग्मूम _उदास

मुस्तक़बिल _भविष्य नक़्शे पा_पांव के निशान

जहां _संसार



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract