महके कमल-दल
महके कमल-दल
दिग्भ्रमित हो रातभर,
एक मधुप उड़ता रहा।
मधुरस से भरे हुए अपने,
कंवल को ढूंढता रहा।
पहुंचा वह मानस सरोवर,
थे खिले कई कमल -दल।
कोमल, सुंदर और सरस,
सुवासित थे निर्झर कल-कल।
निज कमलिनी को देख मधुप,
हर्षित हुआ वह प्रतिपल।
बंद वह पंखुड़ियों में हो गया।
रात भर महके कमल-दल।
