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Alka Soni

Abstract

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Alka Soni

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महके कमल-दल

महके कमल-दल

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दिग्भ्रमित हो रातभर,

एक मधुप उड़ता रहा।

मधुरस से भरे हुए अपने,

कंवल को ढूंढता रहा।


पहुंचा वह मानस सरोवर,

थे खिले कई कमल -दल।

कोमल, सुंदर और सरस,

सुवासित थे निर्झर कल-कल।


निज कमलिनी को देख मधुप,

हर्षित हुआ वह प्रतिपल।

बंद वह पंखुड़ियों में हो गया।

रात भर महके कमल-दल।


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