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Arun Gode

Inspirational

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Arun Gode

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महिला दिवस

महिला दिवस

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वो दिन चल, मिट और लद गये,

जब नारी अपने को मानती थी अबला।

उसने आज हर क्षेत्र में मचा दी है हलचल,

और वो बन गई है सबला।


सामाजिक मृत मान्यताओं ने उसे किया था अशांत,

धैर्य, कर्म और योग्यता से बनी वह शांत।

धन्य हो, वो मातोश्री सावीत्री फुले,

जिसने जला दिये अज्ञानताके चुल्हे,

और महिला प्रगती के मार्ग खुले,

परिवार, समाज और देश लगा फलने-फुलने,

समान अवसरों के मौके लगे मिलने।


पहिले नाम रहा करते थे सोना और शांता,

लेकिन उसे हमेशा रहती धन की किल्लत, 

मस्तिष्क और मन रहता अशांत।

कमर में रहती थी जिम्मेदारी कि चांबि,

लेकिन दिल और दीमाग में रहती अशांती,

अपमान और आर्थीक तंगी से हमेशा जूझती।


हर साल मनाते हैं महिला दिवस मार्च आठ,

हर नारी ने बांध ली है यह गाठ,

अब नहीं यहा से पिछे लौटना,

आज वो नहीं सहती अपमान और खाती नहीं दाट,

समय आने पर लगा देती है सब की वाट,

और पढाती हमेशा सबको सभ्यता का पाठ।


ग्रंथ, वेद,मनुस्मृति और पुरान कहते उसे शुद्र,

समाज का व्यवहार उसके साथ आज भी है अभ्रद्र।

वो है,परिवार और समाज लिए त्याग की मुर्ति,

लेकिन दोनो ने कभी नहीं स्वीकारा महिला की स्फुर्ति।


प्रकृतीने क्या बनाया नारी को,

वो है मानव कल्याण की मुर्ति।

अपनों के लिए आज भी रखती सहनशिलता का रुप,

परिवार के लिए ,अन्याय के प्रति आज भी रहती चुप। 


सागर से भी बड़ा है

उसका सहिष्णुता का नाप,

उसके योगदान को नापने का

पुरुष के पास नहीं कोई माप।


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