महामारी
महामारी
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मैं महामारी हूँ !
न कोई बेचारी हूँ,
हैजा, प्लेग या कोरोना
अलग नाम और रूप अलग
सब में ही मानव को रोना।
यूँ ही नहीं आती हूँ
अत्याचारों के बोझ तले
जब पृथ्वी को दबा पाती हूँ !
याद दिलाने कर्तव्यों की,
मति की धुँध मिटाती हूँ
हूँ प्रबल न बेचारी हूँ !
मैं महामारी हूँ
अनगिनती को मैंने
मिटते और मरते देखा है,
"जो संभल गए"
"जो बदल गए"
उनकी ही जीवन रेखा है,
नासमझों का
बस, इतिहास में लेखा है।
रे मानव न दानव बन!
दो पाया है तो मानव बन
कर पेश मिसाल
सकल जग में
विजय का अधिकारी बन।