महागौरी सिद्धिदात्री
महागौरी सिद्धिदात्री
जग जननी जगदंबा का, ज्योतिर्मय जयकारा है।
हर कण हर कोना शुद्ध होता, माता का भंडारा है।
सिंह पर सवार माता, जल-थल-नभ से ललकारा है।।
दुर्गुणों पर चोट करता, माता का हुंकारा है।
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कुष्मांडा का श्रृंगार करते, सब मिल मां का वंदन करते।
चुनरी चोला पहनाकर, कलश माँ का स्थापित करते।
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मंगल ही मंगल हो, दसों दिशाएँ गूंज रही है।।
मानव का उद्धार हो, आदि शक्ति को पूज रही है।
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मां का वरदान रहे, आठों चक्र शुद्ध रहे।
अपेक्षा से उपेक्षित रहें, चित्त सबका एकाग्र रहे।
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सद्ज्ञान का संज्ञान लेती, संस्कारों पर केंद्रित करती।
माता की वंदना, जीवन को आलोकित करती।
दुष्टों पर संधान कर, दुष्टों का संहार करती।
हर मलिनता नकारकर, नवप्रभात स्पंदित करती।
