STORYMIRROR

Monika Sharma "mann"

Tragedy

3  

Monika Sharma "mann"

Tragedy

मेरी व्यथा

मेरी व्यथा

1 min
305

 मैं एक औरत हूं

 बसती हूं पूरे घर में

रहती हूं सब की

 दिनचर्या में शामिल


मैं आज की नारी हूँ

करती घर व बाहर सब काम 

करती संतुलन सब में


पति जब थक कर 

घर आए 

देती आराम उसे


 बच्चों की गुरु हूँ मैं

कराती सब विषयों का ज्ञान

 अच्छे बुरे का बोध कराती 

कदम कदम पर रखती ख्याल


सास ससुर की नर्स हूं मैं

 उनकी दवाइयों का 

खाने-पीने का 

उनके सैर सपाटे का 

रखती हूं ध्यान 


 खुद यदि आराम

 करना चाहूं तो

 याद आता घर

 का सारा काम


मैं एक बेकार हूं 

करती सब काम

 बिना किसी लेनदेन के


 यदि किसी दिन 

शरीर से प्राण निकल 

जाएंगे मेरे

 तो रह जाऊंगी

 राख बनके

एक राख हूँ मैं

मैं एक औरत हूं।


जिसने कभी 

अपना महत्व 

 न जाना 

और यह दुनिया 

भी उसका मौल 

न जान पाएगी कभी


क्योंकि मैं एक औरत हूं 

जिम्मेदारियों को कंधों

पर लिए 

सुबह से शाम तक 

दौड़ती भागती औरत।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy