मेरी शिद्दत तुम
मेरी शिद्दत तुम
सुनो आज झाँको मेरी आँखों में एक बात बतानी है तुमको,
जब-जब तुम शिद्दत से मेरे लिखे अल्फ़ाज़ों को गुनगुनाते हो..!
तब तब महसूस होता है मानों शब्द साँस ले रहे है..!
ढालती हूँ जब-जब मैं कलम उठाकर तुम्हारी अदाओं को
कागज़ के सीने पर मचल उठता है पन्ना पन्ना तुम्हें छूने को..!
एक महक उठती है आबो हवा में भीनी भीनी जब
खयालों में तुम आन बसते हो..!
आहा क्या कहूँ ? सुनाई देती है जब तुम्हारे कदमों की आहट
दिल में असंख्य सूर की सरगम लहराते बजती है पाजेब सी झंकार,
मेरे दिल के एहसासों को गुदगुदा जाती है..!
चुप के से पीछे से आकर मेरी आँखों पर जब तुम हथेलियों को
हौले से रखते हो न पूछो उस हसीन पल का आलम,
बस धड़क चुक जाता है दिल,
रूह के भीतर खलबली मचती है, मैं नतमस्तक सी नैंन मूँदे
समर्पित तुम पर अपना सबकुछ वार देती हूँ...!
तुम्हारा आगोश मैं भरना मुझे अकल्पनीय उन्माद से
सराबोर नम कर जाता है मेरी पलकों को
तुम्हारे सीने से लगकर तुम्हारी धड़कनों से मेरा नाम सुनना..!
उफ्फ़ मार ही ड़ालोगे क्या..!
तुमसे ही मेरा जीना
तुमसे वाबस्ता हर बात मुझे जीने की वजह देती है...!

