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Ratna Kaul Bhardwaj

Classics

4  

Ratna Kaul Bhardwaj

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मेरी सादगी

मेरी सादगी

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फितरत में मेरी वह कवायद नहीं

जो छीन ले किसी के दिल की खुशी

नामुराद दिल मेरा एक समंदर है

संभाले रहती हूँ रिश्तों की कश्ती


मिले  हमकदम कई पर खोखले दिल के

पहचान न पाई मैं उनकी खुदगर्ज़ी

मौका परस्त थे, ज़ुबान के थे वे मीठे

और थी मैं ज़ेहन से वही पुरानी


शादमानी देते गए साथ दो कदम चलके 

बेखबर थी में रह गई  हसरतें अधूरी

शक ओ शुबा कभी मेरा ईमान न था

न समझ पाई मतलबी हरकतें उनकी 


रस्में उल्फत निभाना  दीन था मेरा

राहों में हमेशा मैने पलकें बिछाई

मेरी सादगी ही मेरी दुश्मन बनी

जालसाज़ी मुझे जो न सिखा पाई


ए दिल सुन फरेब हमें आता नहीं

चेहरे का नूर है हमारी अपनी सादगी

खफा रहना तो हमारी अदा नहीं

चल बसा लेते है दूर दुनिया अपनी।


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