मेरी पहचान
मेरी पहचान
कभी प्यार के धागों में उलझाकर
कभी रूमानी एहसासों में फंसाकर
कभी जिम्मेदारी का नाम देकर
कभी एहसान का भाव जताकर
हर बार अपने ही मन की करवाई है मुझसे
दबी जुबां में बात करो तुम
खिलखिला के ना हंसा करो तुम
ये क्या लिबास पहना है तुमने
जरा अदब से रहा करो तुम
हर बार मेरी आज़ादी की
हत्या करवाई है मुझसे
औरत त्याग की मूरत है
औरत ममता की मूरत है
औरत आदि शक्ति है
औरत ही शाश्वत भक्ति है
बना कर देवी मुझे ,
बस त्याग ही करवाये है मुझसे
होशियार हो तुम तो
समझदार हो तुम तो
सबसे अच्छी हो तुम तो
आज फिर ये सब कह रहे है
आज फिर शायद कुछ,
बलिदान लेना है मुझसे
नहीं बनना देवी मुझे
मुझे इंसान ही रहने दो
नहीं बनना समझदार मुझे
मुझे नादान ही रहने दो
बहुत हुआ ,
अब ऐसे नहीं जिया जाता मुझसे।
