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Bhawana Raizada

Drama

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Bhawana Raizada

Drama

मेरी नज़र ढूंढे मेरा ही घर

मेरी नज़र ढूंढे मेरा ही घर

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वो बचपन के खिलौने,

वो परियों की कहानी,

कहाँ गयी वो बातें अनजानी।


वो साथ अपनों का हँसना खेलना

ज़रा सी बात पर रूठना मनाना।

रहते थे जो साथ मिलकर

हर गम हो अपने दम पर।


वो उछलना खुशी से हाथ उठाकर

रुकना नहीं यूँ मुरझाकर।

आंगन में गूंजती थी लोरियाँ मां की

दादी की थी सीख जहाँ की।


बाबा का वो पाठ पढ़ाना

दादा का वो गले लगाना।

दोस्तों के संग बिताई दोपहरें

हर घड़ी हर पल हर पहरे।


गुलेल से आमों को तोड़ना

माली को जगाकर वो भागना।

गिल्लीडंडे की होती थी लड़ाई

अगले पल जैसे हो भाई।


अब नहीं दिखता वो प्यार कहीं

खो गयी हो जैसे आत्मा कहीं।

सारे रिश्ते हो गए मतलबी

रही न उम्मीद किसी से कभी।


न वो घर है न घरवासी

न हम वो न तुम रासी।

हर पल घटता आता अंत नज़र

मेरी नज़र ढूढे मेरा ही घर।


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