मेरी नजरें
मेरी नजरें
मेरी नजरें वो आँचल ढूँढे
जो मखमल था
जो ममता का संबल था
मेरी नजरें वो उंगलियाँ ढूँढे
जिसमें पिता का बल था
उस घर की छाँव ढूँढे
जहाँ सोने का सिरहाना था
जहाँ जगने पर सूरज का आना था
मेरी नजरें वो हाथ ढूँढे
जो मेरे आँसुओं को भी
अपनी मुट्ठी में बंद कर लेते थे
मेरी नजरें वो साथ ढूँढे
जो मेरी पहाड़ जैसी मुश्किलों को भी
चंद कर देते थे
मेरी नजरें वो आँगन ढूँढे
जहाँ मेरा बचपन फला- फूला था
मेरी नजरें वो बारिश ढूँढे
जिसमें मेरे मित्र और सावन का झूला था
आज इन नजरों में बस
इंतजार पसर गया है
न जाने कहाँ मेरे अपने हैं?
न जाने कहाँ घर गया है?