मेरी ना रही.....
मेरी ना रही.....
वफ़ा का तेरी
हर क़िस्सा बयान करा
जफ़ा पर जाने क्यूँ
कलम रुक सी गई।
बेवफ़ा यह मेरी होकर भी
मेरी ना रही
आज भी महफ़िलों में
तेरी तारीफ़ करती है।
तुझे जहान बता
मुझे ज़र्रा बताती है
ऐसा फ़ितूर तेरा चढ़ा
मेरी एक ना सुनी।
बेवफ़ा यह मेरी होकर भी
मेरी ना रही
ना समझेगी तू
ना समझा पाएगा 'वशि'।
हाल ए दिल ना बताएगा कभी
लगे कड़वा शायद
पर है सच तो यही
बेवफ़ा यह मेरी होकर भी
मेरी ना रही....।।