क्यूँ ठोकर से कतराता है
क्यूँ ठोकर से कतराता है
क्या चट्टानों के डर से,
लहरें मौज नहीं खाती,
क्या तूफ़ान के डर से,
चिड़िया घोंसले में रह जाती,
और क्या सूखे के दर से,
मछली ताल को छोड़ जाती,
तो फिर क्यूँ ठोकर के सर से,
हम राह में न चलें,
क्यूँ पिछड़ जाने के दर से,
दौड़ में हिस्सा न लें,
भूल गया क्या वोह दिन तू,
जब तू नन्हा बच्चा था,
हर कदम पर तू गिरता था,
और खड़ा हो संभलता था,J
वोह दिन है और आज का दिन,
जब तू दौड़ लगता है,
तू क्यूँ ठोकर से कतराता है,
कलम भरी है दवात से,
लिख दाल तू अपनी क़िस्मत ख़ुद,
राह सजी है फूलों से,
जा पाले अपनी मंजिल खुद,
क्यूँ काटों से घबराता है,
बस जीत की ख़ुशी का सोच,
क्यूँ ठोकर से कतराता है।
