मेरी माँ
मेरी माँ
मैं अकेला पड़ा
राहों में खड़ा
ढुंढती नजरें
तुम हो कहां
ओ मेरी माँ..
इस धूप में
जाऊं कहाँ
छाँव तेरे आँचल की
पाऊं कहाँ..
सूनी धरती
सूनी है आसमां
आओ न माँ
तुम हो कहां
मैं तेरे चरणों की
धुल से रहूं लिपटा
मैं अकेला पड़ा
राहों में खड़ा
ढुढंती नजरेंं
तुम हो कहां
ओ मेरी माँ.. !
माँ मेेेेरी जीवन की
तुम हो दाता
कैसे रहूं दूूूर मैं
मुझको बता ..
ममता के सागर में
मुझको डूूूबा
मैं अकेला पड़ा
राहों में खड़ा
ढुढंती नजरें
तुम हो कहां..
ओ मेरी माँ..!