मेरी कविता
मेरी कविता
मेरी कविता
मेरी शक्ति है
मेरी पूजा है,
मेरी कल्पनाओं के द्वार है
जो मेरी इच्छाओं के पार भी देखती है
एक नई दुनिया,
जहां नियमों का कोई बंधन नहीं
ना स्वार्थ का कोई अस्तित्व है,
वो लिखती है
विस्तृत भाव से जो मन होता है
जो सामने जैसा दिखता है,
प्यासे के लिए जल बन
तृप्त करती है भूख को,
मानव मन को उम्मीद दे
खिला देती है मुस्कान
मुरझाए चेहरे पर,
नाप लेती है
अपनी लेखनी से
चारों दिशाओं को
उसमें बहने वाली सुगंधित पवन को,
लिखती है
हरियाली
बो कर बीज
उस शुष्क मरुस्थल में
जहां कोई प्राण नहीं
नहीं कोई वायु है,
नीले आसमान को
कागज बना
रचती है
नया काव्य,
प्रफ्फुलित हो
सृजित करती है
उसमें एक नई
धरा।