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मेरी कलम, मेरी आवाज़

मेरी कलम, मेरी आवाज़

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आवाज़ उठाई है मैंने पहली बार

कलम ने रचना की है पहली बार

सब देख कर मैं चुप कैसे रहती?

जो बीती है वो बयाॅं कैसे न करती?


मुझे प्रेरित किया है हा-हाकारों ने

करूण रोदनो ने, चीख-पुकारों ने

पतित पापीयों के अत्याचारों ने

चुप-चाप बहती अश्रु-धाराओं ने


न्याय की गुहार लगाती आत्माओं ने

भूख से बिलखते बच्चों की माँओं ने

गरीबी की आग में झुलसते किसानों ने

वासना की बलि चढ़ी योषिताओं ने


मेरी पहली रचना है न्याय का निवेदन

न और कुछ कर पाऊ मैं अकिन्चन

मेरी आवाज़ है मेरी कलम की स्याही

सशक्त इतनी की पापी करे त्राही-त्राही।


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