मेरी किस्मत
मेरी किस्मत
किसी आसेब का साया है इस पर लोग कहते हैं,
हमें अपनों से नहीं लगती ये लोग हमेशा कहते हैं,
रुक-रुक कर मुड़-मुड़ कर वो निहारते हैं मुझको,
जाने क्यों एक बदनुमा दाग वो लोग हमें कहते हैं,
कुछ मिले ऐसे जो भोले बनकर हाल हमारा पूछते,
पर पीठ पीछे छुरा घोपकर हमें आसेब वो कहते हैं,
भावें तनकर और खंजर हाथ में हम यूँ तन के बैठे,
अपनी आत्मरक्षा करने को खूंखार वो हमें कहते हैं,
जिंदगी में कितनी रातों को हम जगे अपनों के लिए,
बिगड़े हुए नसीब का खोटा सिक्का वो हमें कहते हैं !