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Sapna K S

Abstract

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Sapna K S

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मेरी खामोशी....

मेरी खामोशी....

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किताबों की तरह बहुत से अल्फाज हैं मुझमें.....

और किताबों की तरह ही खामोश रहता हूँ मैं...


उसने हर अल्फाजों में अपने,

जीवन का हाल बयान है किया,

मैं क्या हूँ....

अपनों के हर साँस से डरता हूँ,

कोई टूट ना जाए मेरी ही किसी,

दम घूटते अल्फाजों के तले...

किताबों की तरह बहुत से अल्फाज हैं मुझमें.....

और किताबों की तरह ही खामोश रहता हूँ मैं.....


मैं आज भी जिये जा रहा हूँ बस इस उम्मीद में कि,

कभी-कभी का खयाल आज भी,

जिंदा होता हैं जेहन में रह रहकर,

उसे रुखसत तो मैंने कर दिया था बड़ी खामोशी से,

फिर भी रूह मेरी चीखती -चिल्लाती रही,

रोक ही लूँगा आखरी साँसों तक....

किताबों की तरह बहुत से अल्फाज हैं मुझमें.....

और किताबों की तरह ही खामोश रहता हूँ मैं....



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