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Renuka Chugh Middha

Abstract

5.0  

Renuka Chugh Middha

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मेरी ज़िन्दगी

मेरी ज़िन्दगी

2 mins
381


मुझे तलाशती मेरी जिन्दगी 

जिन्दगी बहुत ख़ूबसूरत सी मेरी जिन्दगी,

बचपन की अठखेलियों में खिलखिलाती जिन्दगी, 

मासूम से लम्हों में मुस्कुराती मेरी ज़िन्दगी।

 

बेपरवाह, बेख़ौफ़ पगडंडियों पे

हिरणी से कुलाँचे भरती जिन्दगीं,

नादान सी मदमस्त माँ-बाबा के

साये तले महफ़ूज़ जिन्दगीं, 


अल्हड़ सी जवानी में  कानों में

सरगम सी बजाती जिन्दगी 

सपनो में, हसीं ख्यालों की 

पायल खनकाती जिन्दगी, 


ग़म के, मुश्किलों के हिस्से से अपनी

ख़ुशियों की मिल्कियत चुराती जिन्दगीं,

बेकरारियों, बेख़बर 

अनजानी सी आहट पर धड़कनें दिल में

हरदम ग़दर मचाती सी जिन्दगी, 


स्वप्निल सी जिन्दगीं में मुझे

मस्ताना बनाती सी जिन्दगी। 

बारिशों, बिजलियों, बादलों के शोर में 

आशिक, दीवाना बनाती जिन्दगी, 

ख्वाब -ए-मेहबूब को सीने में जगाती जिन्दगीं, 


नई डगर नये मोड़ की पगडंडियों में

नई राहों पे ले जाती मेरी जिन्दगी। 

नई ज़मीं, इक नये आसमां में अपने

वजूद को सम्माहित करती मेरी जिन्दगी, 

सपनों की दुनिया छोड़, इक नई सफ़र पे

क़दम बढ़ाती मेरी जिन्दगी।


कुछ कहीं कुछ अनकही सी अनजानी सी जिन्दगी  

कभी खामोश कभी शोर करती जिन्दगी। 

पहचान ढूँढती कभी,पहचान बनाती जिन्दगी। 

कुछ खो दिया या कुछ पा लिया, 

जाने क्या जिन्दगी ने हासिल किया। 


तलाश, फिर भी अधूरी रही, 

इक हूक सी रह रह उठती रही सीने में, 

अपना वजूद तलाशती ये जिंदगी।

मिला कुछ और ही तुझे जिन्दगी। 

लम्हे बीते ख्वाहिशें फिर भी जिन्दा रही, 

पता नहीं कहां ले जाएगी ये जिंदगी।

 

लिखा है मैंने तुझे फिर कलम से, 

मेरी पहचान मुझे बताती जिन्दगी। 

रूक कर ठहर कर पढ़ने लगी हूँ आजकल तुझे, 

फिर भी हर पल हर लम्हा कुछ याद दिलाती जिन्दगी। 


कही खो न जाए तुझे तलाशते -तलाशते

 याद रह जायेगी कुछ बची जिन्दगी। 

किसी ने कहा, लगता है कुछ शेष है

मुझे, कुछ यूँ है तलाशती मेरी जिन्दगी।


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