मेरी हमदर्द हो
मेरी हमदर्द हो
गीत
मेरी हमदर्द हो
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शुक्र सौ सौ बार करता, हूँ तुम्हारा इसलिए,
तुम मेरी तन्हाई की साथी, मेरी हमदर्द हो।
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तुम मेरी फुर्सत में, मेरे साथ रहती हमकदम,
गर नहीं एहसान मानूं, तो कहाऊंगा अधम।
भीड़ में जब जब भी, मैं तन्हा हुआ हूँ जानेमन,
तुमने आकर के संभाला, है मुझे मेरे सनम।।
सोच में मेरे तुम्हीं, दिन रात हो आठों पहर,
मैं बीमारे इश्क हूँ, और तुम दवाऐ दर्द हो।
शुक्र सो सो बार करता हूँ तुम्हारा इसलिए,
तुम मेरी तन्हाई की साथी मेरी हमदर्द हो।।
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जो नहीं दिल प्रीत से आबाद, वो शैतां का घर,
वो कभी हो ही नहीं सकता, है लोगों मौतबर।
जिस जगह अवसर, तरक्की के नहीं मिलते कभी,
लोग जाते छोड़कर, वीरान होता वो शहर।।
प्रीत से लबरेज करके, दिल मेरा साबित किया,
तुम जरूरत जिंदगी की, मेरी ऐ बेदर्द हो ।
शुक्र सौ सौ बार करता हूँ तुम्हारा इसलिए
तुम मेरी तन्हाई की साथी मेरी हमदर्द हो।।
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दिन गुजर जाते हैं लेकिन, रातों का लंबा सफर,
खत्म होता ही नहीं, अंगारों पे होता गुजर ।
नींद बैरन रूठ जाती, ख्वाब हो जाते हवा,
आंखों ही आंखों में कटती रात हो जाती सहर।।
याद तेरी उस समय,आती तो लगता है यही,
तुम हवा का गर्मियों में, एक झोंका सर्द हो।
शुक्र सौ सौ बार करता हूँ अदा मैं इसलिए
तुम मेरी तन्हाई की साथी मेरी हमदर्द हो।।
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अख्तर अली शाह "अनन्त"नीमच
9893788338