मेरी दुनिया
मेरी दुनिया
ये विशाल
अलबेली सी दुनिया
मेरी दुनिया के बारे में
जानने की कोशिश में
जिन चश्मो से
मुझे देखती है
वो कुछ कुछ मुझे पता है
इस दुनिया को
जो ख्याली उम्मीदें हैं
वो कुछ कुछ मुझे पता है
इस दुनिया को
क्या चाहिए वहां से
वो कुछ कुछ मुझे पता है
इस दुनिया को
क्या शिकायत है उससे
वो कुछ कुछ मुझे पता है
असल मे
इस दुनिया को
मेरी दुनिया से क्या मतलब है
वो मुझे पता है
मगर
इस दुनिया को
कुछ भी नहीं पता कि
मेरी असल दुनिया
क्या है
क्यों है,
कितनी है, किसलिए है
किनके लिए है
और कब तक है
वो बस अन्दाजे लगाती
बातें बनाती
उलझाती उलझती
मेरे आगे तो
कभी पीठ पीछे
लगी रहती है
खोजने में
जबकि सब
बहुत सादा है
मेरी दुनिया
बहुत बहुत छोटी है
उसमे सिर्फ वही है
जो मेरा है ,
मुझसे जुड़ा है,
मुझमे है,
मुझ तक है।
दुनिया के
किसी काम की नहीं
मेरी दुनिया।