मेरी दिलकशी के मंजर को
मेरी दिलकशी के मंजर को
मेरी दिलकशी के मंजर को,
अपनी निगाहों से ना लपेटो तुम,
जब बहक जायें हम तुम्हारे संग,
तब अपनी बांहों में ना समेटो तुम।
तुम पर ये दिल लुटा के हमने,
इस दिल को धड़कना सिखाया,
अब इस दिल को मजबूर करके,
अपने नैनों के बाण ना फेंको तुम।
हमें इल्म ना था अपनी दिलकशी का,
जो तुम्हारे साथ यूँ जवाँ हुई,
मेरे लबों का ऐसे मधुपान करके,
इन्हें तन्हा अब ना छोड़ो तुम।
कभी जी चाहता है कि सौंप दे तुम्हें,
अपना ये तन और मन,
मेरी दबी हुई चाहत का,
फायदा उठा के मत खेलो तुम।
मुझे कामवासना के बाण का तीर,
सहने की अभी आदत नहीं,
मेरी दिलकशी के मंजर को,
अपनी निगाहों से ना लपेटो तुम।।