मेरी चाह
मेरी चाह
कितनी मुश्किल है,
कुछ मिलने के बाद भी।
कितनी मंज़िलें हैं,
कुछ पा लेने के बाद भी।
सबकुछ मिल जाए
ये आशा भी नही।
कुछ-कुछ से, दिल बहल
जाए, ये अभिलाषा भी नही।
बस इतनी सी दुआ
है मेरी, ईश्वर से।
मेरा सम्मान बचा रहे,
कुछ मिले भी, या नही।